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भक्ष्याभक्ष्य विचार ।
हैं, पर इसमें भी बेईमानी चल गयी है। परदेशी चीनी स्वदेशी कहकर बेंची जाती है । इसलिये जानो हुई जगहसे ही चीनी लेनी चाहिये, जहाँ इस तरहकी मिलावट नहीं की जाती हो । इसी प्रकार विदेशी नमक, विदेशी केशर भी इस्तेमाल नहीं करनी चाहिये।
१५-खडी दाल-किसी तरहकी दालका अनाज विना दोनों दाल अलग किये नहीं खानी चाहिये।
१६-दिल्लीका हिन्दु-बिस्कुट-दिल्ली, पूना, बड़ौदा आदि स्थानोंमें जो बिस्कुट तैयार होते हैं, उन्हें हमारे कितने ही भाई काममें लाते हैं, परन्तु पहले तो उनके बनाने में विलायती मैदा काममें लायी जाती है और दूसरे दो-दो तीन-तीन दिन तक पानी में फूलती रहती है, इसके बाद उसके बिस्कुट बनाये जाते हैं। इससे असंख्य संमूच्छिम और द्वीरन्द्रियादिक जीवोंकी उत्पत्ति होती है और उनकी हिंसा होती है । कहीं-कहीं तो बिस्कुट तैयार करनेमें चरबी भी काममें लायी जाती है, इसलिये विस्कुट सर्वथा त्याग देने योग्य है। नानखाखताईमें भी विलायती मैदा काममें लायी जाती है, इससे वह भी त्याग देना चाहिये।
१७-टूथ-पाउडर और टूथ ब्रश (दांतका मंजन और कूची) बिलायतसे जो दन्तमंजन आता है, उसे काममें लाना ठीक नहीं न मालूम उसमें कौनसा भक्ष्याभक्ष्य पदार्थ पड़ा होता है। यदि मञ्जन ही लगाना हो तो बदामके छोकलेको जला कर उसकी बकनीके साथ कपूर, घरास, खड़िया, हरड़, बहेड़ा, आंवला, अनारकी छाल, गेरू, कत्था, मोचरस, हीराकसीस, छोटी हरे,
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