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अभय-रत्वसार ।
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११-बीड़ी, हुक्का, चिलम, चुङ्गी, सिगरेट, तम्बाकू, गाँजा, चरल, माजू न, अफ़ोम, कुसुम्बी, भांग आदि नशेकी चीजें काममें लाना बुरा है. । जीवहिंसा, अनर्थका कारण तथा पेसेकी फ़िजूल खर्चीके सिवा इससे और कोई फायदा नहीं है। जिसे नशेकी लत लग जाती है, उसे तो जिस दिन नशा नहीं मिले, उस दिन जान जानेकी नौबत आ जाती है। अन्त में क्षयरोग हो जाता है और किसी-किसीकी तो नशेकी ही हालतमें जान चली जती है । इससे अग्नि, वायु तथा अन्य त्रस जीवोंकी हिंसा होती है, इसलिये इन सब व्यसनोंको छोड़ देना चाहिये।
१२-विलायती दवाएं भी अभक्ष्य है। उचित तो यह है कि आवमी रोगका कारण ही पैदा न होने दे। यदि आत्मा बलवान हो, तो क्या नहीं कर सकती ? यह स्वर्ग प्राप्त कर सकती है, सिद्धिसौध ( मोक्ष-पद ) को भी प्राप्त कर सकती है। कितने ही लोग तो बड़े शौकसे विलायती दवाएं पिया करते हैं, यह बहुत बुरी आदत है। प्रत्यक्ष अनाचार है।
१३-गुड़में जीवकी उत्पत्ति होती है। कितने ही बेईमान ब्यापारी नफे के लिये गुड़में चनेका बेशन, वारा या मिट्टी मिला देते हैं। इस लिये खब परीक्षा करके गुड़ लेना और खाना चाहिये।
१४-विदेशी खाँड़ बहुत ही अशुद्ध पदार्थासे साफ़ की जाती है, इस लिये उसका व्यवहार करनेसे धर्म भ्रष्ट होता है और रोग भी होता है । इसीसे लोग काशी आदिकी चीनी काममें लाने लगे
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