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भक्ष्याभक्ष्य विचार ।
१३-करैला । १४-लोना साग । १५-गाजर । १६ लोढ़ीपद्मका कन्द। १७-- गिरिकर्णी-( यह काठियावाड़में अंचारके काममें आती है, कच्छ देशमें इसकी पैदाइश बहुतायतसे है)। १८ -किसलय (कोमलपत ) सभी प्रकारके वृक्षके हरे और नये पत्ते तथा वनस्पतियोंके उगनेके समयका अंकुर अनन्तकाय जानना चाहिये। यदि जरुरत हो, तो मोटे पत्ते लेने चाहिये। १६-खीरसुआकन्द ( कसेरू.)२०-थेगकन्द । २१-मोथा। २२-लोन-वृक्षकी छाल । २३-खिलोड़ कन्द । २४-अमृतवेली।
२५–मूली ( देशी विदेशी)-मूलीके पांचों अङ्ग अभक्ष्य है (१) मूलीका कन्द (२) डाल (३) फूल (४) फल (५) बीज ये पाँचों ही अभक्ष्य हैं। इनमें बहुतसे त्रस-जीव उत्पन्न होते हैं।
२६-भुईफोड़--यह बरसातके दिनों में छत्रके आकारमें उत्पन्न होता है।
२७-बथुएका साग।
२८-बरुहा—जिसमें विदल धान्यकी तरह अङ्कर निकल आया हो । रातको जो दाल पानीमें छोड़ी गयी हो और उसमें अङ्कर निकल आये हो, वह अभक्ष्य है। जो अन्न पानीमें फुलाया जाये वह सवेरे ही फुलाना चाहिये और थोड़े ही देर पानीमें रखना चाहिये । मतलब यह कि अङ्कर नहीं फुटना चाहिये । अगर अन्नको उबाला जाये, तो अङ्कर निकलनेका भय नहीं रहता ।
२८-पालकका साग। ३०-सुअरवल्ली (जंगली लता ) ३१--कोमल इमली, जिसमें बीज न हों, वर्जित है । ३२-आलू कन्द तथा रतालू, पिण्डालू, शकरकन्द, धोषात
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