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अभय-रत्नसार।
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की, करे, करीर आदि वनस्पतीयोंके अङ्कर अनन्तकाय कहे जाते है । टिंडेका कोमल फल, वरुण-वृक्ष, बड़ा नीम आदिको भी अनन्तकाय जानना ( अङ्करावस्थामें )।
इस प्रकार अनन्तकायके ३२ नाम गिनाये गये हैं। प्रसिद्ध तो इतने ही हैं, विशेष नाम तो अनेक हैं। किसी वनस्पतिके पांचों अङ्ग, किसीकी, जड़, किसीका पत्ता, फूल, छाल, या काठि अनन्त काय होता है । किसीका एक, किसीके दो, किसीके तीन, किसीके चार और किसीके पांचों अङ्ग अनन्तकाय होते हैं। जिस वनस्पतिके पत्ते, फल आदिकी नस या सन्धि मालूम न पड़े, गांठ गुप्त हो, तुरत टजाये, तोड़ते ही पिचक जाये, पत्ता मोटे दलका और चिकना हो, जिसके फल और पत्ते बड़े कोमल हों उसको अनन्तकाय जानना। यह सब लक्षण एक ही में हों, यह सम्भव नहीं हैं। कोईका साग भी अनन्तकाय कहा गया है। अनन्तकायके सम्बन्धमें जानने योग्य बातें।
१-कितने ही धूर्त दूकानदार दूध, खोये और घीमें रतालू या शकरकन्द पीस कर मिला देते हैं । इसके बारेमें पूरा ध्यान रखना चाहिये।
२---गीली अदरक या कच्ची हल्दीके स्थानमें सोंठ या सूखी हुई हलदी खानेके काममें लानी चाहिये । इनके सिवा और किसी अनन्तकायका सुखौंता भी काममें नहीं लाना चाहिये। इनका अचार भी वर्जनीय हैं । गाजरका सुखौंता या अँचार तथा घीकुवार, कच्ची हल्दी, अदरक, गिरोकर्णी आदिका आचार सर्वथा अभक्ष्य है।
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