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अभय-रत्नसार।
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३२ बत्तीस अनन्तकाय । सभा अनन्तकाय अभक्ष्य हैं; क्योंकि एक सुईकी नोक बरा. बर जगहमें कन्द-मूलोंको कलीमें अनन्त जीव रहते हैं । अतएव श्रावकोंको उचित है कि अनन्तकायसे परहेज़ करें । एक जिह्वाके स्वादके लिये अनन्त जीवोंकी हानि करना बहुत ही बुरा है। अनन्तकायका सर्वथा त्याग करनेसे अनन्त जीवोंको अभयदान देनेका फल मिलता है। क्या अभक्ष्य-भक्षण किये बिना हमारा निर्वाह नहीं हो सकता? क्या और वनस्पतियोंका अकाल पड़ गया है ? जो लोग प्राण जाये, तो जायें, पर अभक्ष्य पदार्थ नहीं खाते, वे धन्य हैं जो अपने बुरे कर्मोंके वशमें पड़ कर जानबूझ कर आँखें बन्द किये हुए, परभवका लेश-मात्र भी भय न मान कर अदरक, मूली और गाजर आदि चीज़ खाते हैं, उन पापियोंकी न जाने क्या गति होगी ? मनुष्यत्वके साथ जैनधर्मका पालन कर अपना यह भव सफल करो और अन्तमें शिवसुखके भागो बनो । हे भव्य-पुरुषों ! भगवान दीर्थाङ्कर महाराजने जो २२ अभक्ष्य पदार्थ बतलाये हैं, उनका शोघ्रतासे त्याग कर, श्रावक नामको सार्थक कर, सच्चे जैन बनो।
बत्तीस अनन्तकायोंके नाम। भूमिके मध्यमें जो कन्द उत्पन्न होते हैं, वे सब तरहके कन्द । २-कच्ची हल्दी। ३-कच्ची अदरक । ४-सूरन । ५-लहसुन । -कच्च । ७-सतावर । ८--बिदारीकन्द । E-घीकुआर । १०-थुहरीकन्द । ११ --गिलोय । १२-प्याज़ ।
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