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७१२ भक्ष्याभच्य विचार । सोलह पहर तक काम लायक रहता है। इसके बाद अभनय हो जाता है। साँझका जमाया हुआ दही १२ पहर बाद अभक्षय हो जाता है। इसका हिसाब यों लगाना चाहिये, कि रविवारको दिनमें दस बजे दही जमाया जाये तो उस समयसे नहीं, बल्कि सूर्योदयसे ही समयकी गिनती होगी। वह दही मंगल वारके सूर्योदय के पहले-पहल खालेना चाहिये । इसके बाद उत दहीके छांछका सोलह पहर समय गिना जायेगा। दूधका यदि रंग वगैरह न पलट गया हो, तो वह चार पहर तक पीने योग्य होता है। दोपहर या संध्याके बाद दुहा हुआ दूध हो, तो उसमें रातके बारह बजेके पहले-पहल जोरन (मेलन ) डाल देना चाहिये।
बाजारका दही नहीं खाना चाहिये; क्योंकि बाजारके वर्तन-बासनका कोई ठिकाना नहीं रहता--कभी-कभी तो उसमें मरे हुए कीड़े भी मिलते हैं । काँजीका काल भी १६, पहरका
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