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अभय-रत्नसार।
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वनस्पतियां अनन्तकाय होती हैं। इसलिये उनका कोमल अवस्थामें भक्षण करनेसे अनन्तकाय-व्रतका भङ्ग होता है। ऐसी चीजें कितनी भी खा जाओ, तो भी जी नहीं भरता। साथ ही जो ऐसे तुच्छ फल बहुत खाता है, उ. सके बहुत रोग भी होते हैं। इसलिये इन सब तुच्छ फलोंका त्याग ही करना चाहिये। ___२१ चलित रस—सड़ा हुआ अन्न, बासी रोटी या पूरी, भात, दाल, साग, खिचड़ी, हलआ, लपसी, भुजिया, बर्फी, पेड़ा, ढोकला, (दाल, और चांवलके चूर्णका बना हुआ) आदि खानेकी चीजें एक रात बीत जानेपर बासी-हो जाती हैं-यही नहीं, सूर्यके अस्त होते ही उनके स्वाद, गन्ध, रस और स्पर्शमें परिवर्तन हो जाता है और वह "चलित रस” हो जानेसे अभक्ष्य पदार्थ हो जाते हैं। यदि बरसातके दिनोंमें बड़ी उत्तमरीतिसे मिठाई बनायी गई हो, तो उत्तम तो यही है कि उसे पन्द्रह दिनों
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