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अभय रत्नसार ।
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विषयकी पूरी शिथिलता पड़ गयी है। कई श्रावक भाई तो भक्ष्याभक्ष्य किसे कहते हैं, वह भी ठीक तरह नहीं समझते । कई भाई यदि इस विषय में थोड़ासा कुछ जानते हैं; किन्तु इन्द्रियोंकी लोलुपताके कारण भक्ष्याभक्ष्य को न सोच कर उसे सेवन करते ही रहते हैं । कई सज्जन खूब पढ़े-लिखे हैं, अंग्रेजी बी० ए० और एम० ए० पास किये रहते हैं, उनको इस विषयका ज्ञान भी ठीक रहता हैं; किन्तु फिर भी वे लोग रसनेन्द्रियकी लालसा में पड़ कर अभक्ष्य पदार्थों का सेवन आनन्द - पूर्वक करते ही रहते हैं, यदि उनसे इस विषय में कुछ कहा जाय तो यही उत्तर मिलेगा कि "आलू, बैगन न खानेसे थोड़े ही धर्म या मोक्ष प्राप्त होता है ?" इसी तरह और भो अनेक प्रकारके कुतर्क करने लगते हैं । उस समय यदि उन्हें शास्त्र - प्रमाण देकर ठीक तरह समझाया जाय तो उसे भी वे लोग अङ्गिकार करने को तैयार नहीं होते। और जब अपना पक्ष
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