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अभय रत्नसार। ६७४ पढ़े। पांगरणाके आदेशके वाद खमा० इच्छा० बहुवेलं संदिस्साउं? इच्छ, खमा० इच्छा. बहुवेलं करूं? इच्छं, पोसह लिये बाद राई प्रतिकृमण करे तो प्रतिकूमणमे चार थुइसे देवांदे, बाद णमुत्थूणं कहकर बहु वेलका आदेश लेवे। पीछे आचार्यमिश्र इयादि कहे।
पोसहकृत्यकी विधि ॥ पहले पोसह लेनेके बाद पडिलेहणके समय प्रभात पडिलेहणकी विधिसे पडिलेहण करे। पीछे गुर्वादिक विद्यमान हो तो विधिपूर्वक चंदना करे। बाद पचक्खाण करके बहुवेलका आदेश लेवे, पीछे देवदर्शन करनेको मंदिरमें जावे, (जिसने पोसह किया हो वह यदि देवदर्शन न करे तो दो या पांच उपवासके प्रायश्चित्तका भागी होता है ) अनन्तर विधिसहित चैत्यवंदन करके पचक्खाण करे। उपाश्रय और मंदिरसे निकलते समय तीनवार आवस्सही कहे। और प्रवेश करते समय तीनवार निस्सीही कहे॥
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