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विधि-संग्रह। भाखियै ए, नल कहै बोध वरीस, पीहर षटकायना ए॥१४॥ आदिनाथ अरिहंतना ए, षट् उपवास कहीस, त्री चौवीहारस्यु ए॥ चोथ दोय जिन वीरना ए, अजितादिक बावीस, आणा गुरु शिर वही ए॥ १५ ॥ पोषध त्रीस तीने थया ए, पूजन तिलक चढ़ाय, तारक जगदीसने ए ॥ उद्यापन संघ भक्तिसुं ए, जन्म सफल नर राय, सूधै मन साधिय ए॥१६॥ सुण वाणी समकित ग्रहै ए, पय प्रणमी गुरु वीर, चित्त ऊमाहीयो ए॥ इण पर जे भवि आदरै ए, थायै चरम शरीर, मूल सुख शासतो ए॥ १७ ॥ ( कलश ) श्रीशांति दाता त्रि जगत्राता भविक ध्याता सुखकरा, इम सतीय साध्यो तप आराध्यो सुजस वाध्यो शिवघरां ॥ आगमे आखै सूरीय साखै सुगुरु भाषै सुण थया, शुद्ध ध्यावै भविक भावै विजय विमल जिनवर कथा ॥ १८ ॥ इति तिलक तपस्या स्तवनम् ॥
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