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अभय रत्नसार।
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संजम शुद्ध संभालतां, उद्यम शिवसुख कमला रे॥१०॥८॥ दोहा ॥ मणि तेजें मुनि तरु ठवे, रथ थकी स्त्री भरतार ॥ देवै तीन प्रदक्षणा, विधिसुं चरण जुहार ॥६॥ देशना सुण पावन थया, ज्ञान सुधारस पाय ॥ को तप परभव तिलक है, कहि यै श्रीमुनिराय ॥ १०॥
॥ढाल २॥भरत भावसुं ए-ए देशी।मधुर स्वरै मुनिवर कहे ए, नाणी गुरु सुपसाय, दीपक सह लोकना ए॥ कम शुभाशुभ परभवै ए, इह भव फल निपजाय, करम गति वंकडो ए ॥११॥
ओहिनाण भव प्रागनोए, नृप सुणे निरमल भाव, समकित साहोयो ए॥ धर्मवतीको नपवधू ए, जाएयो हे तत्व प्रस्ताव, साची जिन वाचना ए ॥१२॥ चोथ प्रमुख नृप चंपस ए, किरिया शुद्ध करी एह, भलै चित भावसुं ए॥ नवांग पूजे तिलकसुं ए, चा जिन चोवीस, रयण कचंण जढ्या ए॥१३॥ तिलक २ से पामियो ए, समकित एह सत्तीस, जनम सफलो गिण ए॥ भगवन तप विधि
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