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विधि-संग्रह।
॥ ढाल ॥ वीर जिोसर उपदिसै-ए देशी ॥ कमला जिम कुंडणपुरै, भुजबल नरपतिभोमोरे। पदमनी पदम सुवासना, श्वेतगज स्वप्ने नीमो रे॥पदम०१॥परतख्य फल ए पुन्यना, प्रसवी सुता पूरै माशै रे। दवदंती नाम दीपतो, गुणमणि बुद्धि प्रकाशै रे ॥ पद० २॥ चौसठकला विच. क्षणा, रूप गुणें करी रंभा रे ॥ देव गुरु धर्म दीपावती, व्रत्तधारी दृढ ६भा रे। प०३ ॥प्रतिमा प्रजैशांतिनी, देवे दोधी त्रिकालो रे ॥मात पिता प्रमोदसु, स्वयंवर वरमालो रे॥५०४॥ उवझायाधिप श्रीनिषधनो, नल लिखियो निला. रे॥ आनन्दसु पंथ आवतां, पूरव पून्य उघा.. रेप. ५॥ मझम रयणी तम भरो, मधरवकंत इहां वनमें रे ॥ मणि भाले तेज दिन मणी, जाग्रत देसी अहो मनमें रे॥५०॥६॥ ग्यानधारी गुरु कोइ मिले, पूछियै एह प्रसन्नो रे ॥ कर्म बलै मुनि आविया, परीसह जीत मदन्नो रे॥१०॥७॥ पंच जीत पंच पालता, टालता दुस्सह सबलारे॥
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