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६५० विधि-संग्रह। प्रकार । वीचमें पारणो स्वामी नहि कियो, नहि कियो चोथो आहार ॥ व०॥६॥ तिहुं उपवासे प्रतिमा बारमी, कोधा बारे जी माश। दोयसें वेला जिनजीरा जाणिय, इण गुण तीस विलास॥ व०॥७॥ तीनसे पारणा जिनजीरा जाणिय, तीन गुणतीस पचास। एहमें स्वामी केवल पामिया, पाम्या मुगति आवास ॥ व०॥८॥ कलश ॥ इम वीर जिनवर सयल सुखकर अतहि दुक्कर तप करी, संयमसु पाली कर्म टाली स्वामी शिव रमणी वरी। सेवक पभणें वीर जिनवर चरण वंदित तुमतणा, संसार कूप पडंत राखो आपो खामी सुख घणा ॥७॥ इति छम्मासी तप स्तवनम् ॥
छहमासी-तपकी विधिः । जिस तरह शासन-नायक भगवान महावीर स्वामाने छह मासो तपकी उत्कृष्ट तपस्या की थी, उस तरह तो इस समय होना कठिन है, कारण वैसा बल-पराक्रम इस समय नहीं रहा। तथापि १८० एक सौ अस्सी उपवासोंके
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