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अभय रत्तसार।
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है, यदि तपस्वोको पुत्र पानेकी इच्छा हो तो वह भी इस तपके आराधनसे पूरी हो जाती है और उसके सुख-सौभाग्यकी वृद्धि होती है।
छम्मासी-तप का स्तवन । गौतमस्वामो रे बुध दो निरमली, आपो करिय पसाय। महावीरस्वामी जे जे तप किया, तेहनो कहिसं विचार ॥ बलि-वली वांदु वोरजी सुहामणा ॥१॥ भावठ भंजण सेव्यां सुख करै, गातां नव निधि थाय । बारे वरसां वीरजी तप कियो, दूर करै सहु पाप ॥२०॥२॥बे कर जोड़ी एह वीनव, श्रीजिनशासन राय। नाम लियां थी नव निधि संपजै, दरिशण दुरित पुलाय ॥ व०॥३॥ नव चौमासा जिनजीरा जाणिय, एक कियो छम्मास। पांचे उणा छ वली ज.णि यै, बारकेकोजोमाश ॥३०॥४॥ बहुत्तर माशखमण जग जोपता, छ दो माली रे जाण । तीन अढ़ाई दो दो कीया, दो दोढ माशी वखाण.॥३०॥५॥ भद्र महाभद्र शिवगति जाणिये, उत्तम एहना
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