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अभय रत्नसार।
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करने पर जघन्य छह मासी-तपका फल प्राप्त होता है,अतः तपस्वीको चाहिये कि समयानुसार १८० उपवास करके यह तपस्या पूर्ण करे । तपस्याके दिन देव-वन्दनादिक धार्मिक क्रियायें करे।
और जो इस विधिके पहले छह मासो तपका स्तवन दिया है, उसे मनन-पूर्वक पढ़े। यदि स्वयं न पढ़ सकता हो तो दूसरे किसीसे श्रवण करे। साथहो तपस्याके दिन "श्री महावीर स्वामी नाथाय नमः” इस पदको २००० दो हजार वार गिने, यानि इस पदकी २० वोस माला गिने । तपस्या पूर्ण कर लेने के बाद जहां पर महावीर स्वामोका तीर्थ हो--पावापुरी, क्षत्रियकुण्ड आदि जा कर यात्रा कर आये। शक्तिके अनुसार छोटाबड़ा उजमणा भी करे। इस तपस्याके फलसे लघुकर्मी होकर अक्षय-सुख संपत्तिको लाभ करता है।
बारहमाती-ता का स्तवन । दान उल्लटधरी दीजीयै–ए देशी॥ त्रिभुवन नायक तूं धणी, आदि जिनेसर देव रे।
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