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अभय रत्तसार ।
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कन्यारो जाडो, वीतशोकनो कुमर थयो सिर
भलो ए
ऊपर लाडो ॥ ७ ॥ इम विवाह थयो दीया दान अपार, घर आया परणी करी ए हरख्यो परिवार ॥ वीतशोक निज पूत्र भणी अपणो पाट दीधो, आपण संजम दरी ए
जगमें जस लीधो ॥ ८ ॥
ढाल - प्रभु प्रणमु' रे पास जिणेसर थंभणो-ए देशी ॥ तिरा नगरी रे चित्रशेन राजा थयो, सुख मांही रे केतलो काल वही गयो । इस अवसर रे आठ पुत्र हूवा भला, चढते पख रे चन्द्र जिसी चढती कला ॥ (उल्लालो) चढती कला हिव राय बैठो पास बैठी रोहणी, सातमी भूमी तसेती करै क्रीडा अतिघणी ॥ आठमो बालक गोद ऊपर रंगसं राणी लियो, पूत्रने प्रीतम आंख गल देखतां हरखे हियो ॥ ६ ॥ ( चाल ) इक कामण रे गोख चढी द्रष्ट पडी, शिर पीटे रे दीन स्वरे रोवे खडी ॥ बूढापण रे मन गमतो बालक मुत्र, हु एकज
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