________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
६४२
विधि-संग्रह। जाया जिणे ए मनमें सुख पामे ॥ २॥ रोहिणी नामे कन्यका ए सबकं सुखकारी, आठों पत्रां ऊपरां ए तिण लागै प्यारी ॥ वाध चंद्रतणी कला ए जिम पख ऊजवाले, तिम ते कुमरीधाय माय पांच प्रतिपालै ॥३॥ कुमरी रूपे रूवडी ए घर अंगण बैठी, दोठी राजा खेलती ए तिण चिन्ता पैठो ॥ तीन भुवन विच एहवी ए नही दूजी नारी, रंभा पउमा गवर गंग इण आगल हारी॥४॥ पुरुष न दीस कोइ इसो जिगने परगाउं, आंख्या आगल साल वध तिण चयन न पाउ॥ देश-देश ना राजवी ए ततखिण तेडाया, सबल सजाई साथ करी नरपति पिण आया। ५॥ वीतशोक राजातणो ए छै कुमर सोभागी, कन्याकेरी आंखडो ए तिणसेती लागी॥ ऊभा देखै सकल लोक चढिया केइ पाला, चित्रसेनरे कंठ ठवी कुमरी वरमाला ॥६॥ देव अनै दे. वांगना ए जप जैजैकार, रलियायत थयो देखने ए सारो संसार ॥ कर जोडो कहै लोक वखत
For Private And Personal Use Only