________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अभय रत्नसार।
-
-----
-
--
और गुरु-पदका गुरुमें खर्च करे । तपस्या पूर्ण हो जाने पर समस्त तीर्थों की यात्रा कर आये। यदि उतनी शक्ति न हो तो एक-दो तीथों की यात्रा तो अवश्यही करे । इस प्रकार विधि-पूक्क जो भव्यात्मा वीस स्थानक तप ओलीकी अराधना करेगा, वह जिननाम कर्मोंको उपार्जन कर तीसरे. भवमें अक्षय-सुखको लाभ करेगा ।
॥ रोहिणी-तप का स्तवन ।। शासन देवत सामणी ए मुझ सानिध कोजै, भुलो अक्षर भगति भणी समझाई दीजै॥ मोटो तप रोहण तणो ए जिणरा गुण गाउँ, जिम सुख सोहग संपदा ए वंछित फल पाउं॥ १॥ दक्षिण भरते अंगदेस छै चंपानयरी, मघवा राजा राज्य करै तिण जीता वयरी ॥ पाटतणी राणी रूवडी ए लखमी इण नाम, आठ पूत्र . * हमने यह विधि रत्न समुच्चय नामक ग्रन्थके आधार पर लिखि है । इसे दो-तीन भाषाको पुस्तकोंसे भी मिलाया; पर सभीमें एकसी भाषा और एकसा ही क्रम देखा गया, इसलिये हम इसे सुविस्तृत रूपसे नहीं लिख सके।
सम्पादक।
For Private And Personal Use Only