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अभय-रलसार।
६३३
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मासे मांहिने, व्रत ग्रहिये वड़भाग लाल रे ॥ वी० १७॥ तप पूरण हुवां थकां, उजमणो निरधार लाल रे । कीजै शक्ति विचारीने, उच्छव विविध प्रकार लाल रेवी०१८॥ वीस-वीस गिणती तणा, पुस्तक पूठा आदि लाल रे। ग्यानतणी पूजा करै, मुंकीजै हठवाद लाल रे ॥वी० १६ ॥ फलवधी नगरनी श्राविका, कीधी विध चित लाय लालरे । जनम सफल करवा भणी, ओहिज मोक्ष उपाय लाल रे ॥ वी० २०॥ __कलश ॥ इम वीर जिनवरतणी आज्ञा धार चित्त मझार ए, सह देख आगमतणी रचना रची तप विध सार ए॥ वसुनंद सिद्धि चंद्र वरसै चैत्र मास सुहंकरू, मुनि केशरी शशि गच्छ खरतर भणो स्तवना मनहरू ॥ २१ ॥ इति ॥
वीस स्थानक-तप की विधि। यह तपस्या आराधन करनेके पहले शुभ दिन और शुभ मुहूर्तके समय नन्दी स्थापन करके सुविहित गुरुके पास विधि-पूर्वक. वीस स्थानक
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