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६३२ पूजा-संग्रह। लालरे। गौतम तीर्थपदे सही, सात थानक मन मान लाल रे ॥ वी० १०॥ पद २ दिठ करै सदा, दोय २ जाप हजार लालरे। पडिकमणो दोय टंकही, करिये पूजा सार लाल रे। शक्ति मुजब तप कीजिय, एक अोली करो वीस लालरे। वीसावीसी च्यारसै, तप संख्या कही एम लाल रे॥ वी० १२॥ जिस दिन जो पद तप करै, तिसके गुण चित्त धार लाल रे । काउसग्गने पर दक्षणा, मुख भणिये नवकार लाल रे ५ वी० १३॥ जिस पदकी स्तवना सुणै, कीजै जिनपद भक्ति लाल रे। पूजन शुभ मन साचवै, दिन २ बढ़ती शक्ति लाल रे ॥ वी० १४ ॥ मृतक जनम ऋतु कालमें, कवि धारयो उपवास लाल रे। सो लेखे नहि लेखवो, निकेवल तप जास लाल रे ॥ वी० १५ ॥ सावज त्यागपणो करै, शोक न धारे चित्त लाल रे । शील आभषण आदरै, मुखसं बाले सत्य लाल रे॥ वी० १६ ॥ जेठ आसाढ़ वैशाखमें, मिगसर फागुण माहे लाल रे । ए षट्
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