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अभय रनसार।
नेह लाल रे॥वो० ३॥ अरिहंत १ सिद्ध २ प्रव. चन नमं ३, सूरि ४ थिवर ५ उवझाय ६ लाल रे। साधु ७ नाण ८ दसण अरु, विनय १० नमं उलसाय लाल रे॥ वी०४॥ चारित्र ११ बंभ १२ क्रियापदे १३, तप १४ गोयम १५ जिण १६ इस लाल रे। चारित्र १७ ज्ञानने १८ श्रुत भणी २६, नम तीथे २० पद वीश लाल रे॥ वी० ५॥ वीस दिवसमें ए कहो, पद गुणनो कर मेव लाल रे । अथवा दिन विसा लगे, वीसे पद गुण मेव लाल रे॥वी०६॥ एक ओली षट मास में, पूरी जो नवि होय लाल रे। केर नवी करणी पड़े, पिछली निष्फल जोय लाल रे॥ वी० ७॥ छठ अट्टम उपवाससं, अथवा देखी शक्ति लाल रे। पोसह कर आराधिय, देव वांद निज भक्ति लाल रे ॥ वो०८॥ संपूरणपद सेवतां, पोसहनो नहि जोग लाल रे। तोही सात पदै सही, पोसह करियै संजोग लाल रे ॥वी०६॥ सूरी थिवर पाठक पदै, साधु चारित्र सुजाण
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