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पूजा-संग्रह |
ढाल ॥ जाणंता त्रिहु ज्ञाने संयुत, ते भवमुगति जिनंद ॥ जह आदरे कर्मखपेवा, ते तप सुरतरु कंद रे ॥ भ० ॥ ८५ ॥ सि० ॥ करम निकाचित पिरण चय जाये, क्षमासहित ज े करतां, ते तप नमियै तेह दीपावै, जिनशासन उजमंता रे ॥ भ० ॥ ८६॥ सि० ॥ आमोसहीपमुहा बहु लद्धि, होवे जास प्रभावै ॥ अष्ट महासिद्ध नवनिध प्रगट, नमिये ते तप भावे रे ॥ भ० ॥ सि० ॥ ८७ ॥ फल शिव सुख मोटुं सुरनरवर, संपति ज हनूं फूल ॥ तं तप सुरतरु सरिखो वंदू, शममकरंद अमूल रे ॥ भ० ॥ ८८ ॥ सि० ॥ सर्व्व मंगल मांहि पहलो मंगल- वर्णवियो जो ग्रंथै ॥ तं तपपद त्रिकरण नित नमियै, वरसहाय शिवपंथ रे ॥ भ० ॥ ८६ ॥ सि० ॥ इम नवपद थुणतो तिहांलीनो, हुआ तनमय श्रीपाल | सुजस विलासै चोथेखंडे, एह इग्यारमी ढाल रे ॥ अ० ॥ ६० ॥ सि० ॥
ढाल ॥ इछारोधन संवरी परणित समता योगे
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