________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
५४२
पूजा-संग्रह। वगारगस्स, सत्ताणसव्वत्थपयासगस्स ॥ हाइजेहथीज्ञानशुद्धप्रबोधै,यथावर्णनासैविचित्राविबोधै॥ तिणेजाणीयेवस्तुषद्रव्यभावा, नहोवैविकत्त्थानिजेच्छास्वभावा ॥ ५६ ॥ होई पंचमत्यादि सुग्यानभेदै, गुरुपासथीयोग्यतातेहवेदइंद॥ वली ज्ञ यहेयाउपादेयरूपे, लहैचित्त मांजेम ध्याने प्रदीपै ॥ ६॥
ढाल ॥ भव्य नमो गुण ज्ञानने, स्वपरप्रकाशक भावै जी ॥ पर्याय धरम अनंतता, भेदा भेद स्वभावै जी ॥ चाल ॥ जे मोक्ष परणति सकल ज्ञायक बोधवास विलासता, मति आदि पंच प्रकार निरमल सिद्धसाधन लंछना ॥ स्याव्दादसंगी तत्वरंगी प्रथम भेद अभेदता, सवि कल्पने अविकल्प वस्तु सकल संशय छेदता ॥६॥
॥ढाल॥ भक्ष अभक्ष न जे विण लहिये, पेय अपय विचार ॥ कृत्य अकृत्य न जे विन लहिये, ज्ञांनते सकल आधार रे ॥ भ०॥ ६२ सि०॥ प्रथम ज्ञान में पीछे अहिंसा, श्रीसिद्धातै भाख्यं ॥
For Private And Personal Use Only