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पूजा - संग्रह | समेतासदापंचसमेतेत्रिगुप्ता, त्रिगुप्त नहीकाम भोगेषुलिप्ता ॥ ४१ ॥ वलीबाह्य अभ्यंतरेय थटाली, हुई मुक्तिनेयोगचारित्रपाली ॥ शुभष्टांगयोगैरमैचित्तवाली, नमुं साधुने तेह निज पाप टाली ॥ ४२ ॥
ढाल || सकल विषयविष वारिनें, निक्कामी निस्संगी जी ॥ भवदव ताप समावता, आतम साधन रंगीजी || स०|| जे रम्या शुद्ध स्वरूप रमणें देह निर्मम निर्मदा, काउसग्गमुद्रा धोर सन ध्यान अभ्यासी सदा ॥ तप तेज दीपै कर्म जीपै नैव की परभणी ॥ मुनिराज करुणा सिंधु त्रिभुवन प्रणमो हितभणी ॥ ४३ ॥
ढाल || जिम तरुफूलै भमरो बेसे, पीड़ा तसु न उपाय || लेई रस आतम संतोष, तिम मुनि गोवरी जाय रे ॥ भ० ॥ ४४ ॥ पांचइन्द्रीनें जे नित जीपे, षटुकाया बन्धु प्रतिपाल || संजम संतर प्रकार राधे, वंद्र दीनदयाल रे ॥ भ० ४५ ॥ सि० ॥ अढारसहस सीलंगना धोरी, अ
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