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अभय रत्नसार।
५८६ चल आचार चरित्र ॥मुनिमहंत जयणायुत वंदी, कीजै जनम पवित्र रे॥ भ०॥सि०॥४६॥ नव विध ब्रह्मगुप्त जे पाले, बारे विध तपसूरा ॥ एहवा मुनि नमियै जो प्रगटै, पूरव पुन्य अंकूरा रे॥भ० ॥४७॥ सि॥ सोनातणी पर परीक्षा दीसै, दिन २ चढतै वान ॥ संजम खप करता मुनि नमियै, देशकाल अनुमानै रे ॥ भ०४८ ॥ ___ ढाल ॥ अप्रमत्त जे नित रहै, नवि हरषै नवि सोचै रे ॥ साधु सुधा ते आतमा, स्युं मुहै स्युं लोचै रे॥ वी० ॥ ४६॥ ॐ ह्रीं साधुपंदे अष्ट द्रव्यं यजामहे स्वाहा ॥
अथ छट्ठी दर्शनपद-पूजा ॥ _दूहा ॥ जिनवर भाषित शुद्ध नय, तत्वतणी परतीत ॥ ते सम्यग्दर्शन सदा, आदरियै शुभ रोत ॥ १॥ काव्य ॥ जिणु त्ततत्तेरुइलकणस्स, नमो २ निम्मलदंसणस्स ॥ मिच्छत्तनासाइसमुग्गमस्स, मूलस्ससधम्ममहादुमस्स ॥ विपर्यासहोवासनारूपमिथ्या, टले जे अनादीअछैजे
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