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अभय-रत्नसार ।
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सि.॥ राजकुमर सरिखा गणचिंतक, आचारजपद योग, ते उवझाय सदा ते नमतां, नावै भवभय सोग रे॥भ०॥३७॥ सि०॥ बावनाचंदनरस समवयौ, अहितताप सवि टालै ॥ ते उवज्झाय नमिजे जे वलि, जिनशासन उजवाले रे ॥ भ०॥ ३८ ॥ सि०॥ ____ ढाल ॥ तप सिज्झायै रत सदा, द्वादश अंगनो ध्याता रे ॥ उपाध्याय ते आतमा, जगबंधव जगत्राता रे ॥ वी० ॥ ३६॥ ॐ ह्रीं श्रीपाठकपदे अष्ट द्रव्यं यजामहेस्वाहा ॥ इति चतुर्थ उपाध्यायपद पूजा ॥
अथ पाँचवीं साधूपद-पूजा ॥ दूहा ॥ मोक्षमारग साधनभणी, सावधान थया जेह ॥ ते मुनिवरपद वंदता, निरमल थाये देह ॥ १॥ काव्य ॥ साहूण संसाहियसंजमाणं, नमोरशुद्धदयादमाणं ॥ तिगुत्तगुत्ताणसमाहियाणं, मुणीणमाणंदपयट्टिमार्ण ॥ करेसेवनासूरिवायगगणीनी, करू वर्णना तेहनीसीमुणीनी ॥
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