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पूजा-संग्रह। ख्याश्रिताज्योतिरूपा, अनाबाधअपुनर्भवादस्वरूपा ॥ १६ ॥ चाल ॥ सकल कर्ममल क्षय करी, पूरण शुद्ध स्वरूपो जी ॥ अव्याबाध प्रभुतामई, आतम संपत भूपो जी ॥ उल्लालो ॥ जे भूप आ तम सहज संपति, शक्ति ब्यक्तिपणे करी॥स्वद्रव्यक्षेत्र स्वकालभावै, गुण अनंता आदरी ॥ स्वस्वभाव गुणपर्याय परणति, सिद्धसाधन परभणी, मुनिराज मानसरहंस समवड, नमो सिद्ध महा गुणी ॥ १७॥
ढाल ॥ समयपएसंतर अणफरसी चरम तिभाग विसेस ॥ अवगाहन लही जे शिव पुहता, सिद्ध नमो ते असेस रे ॥ १८ ॥ भ०॥ पूरब प्रयोगने गति परणामे, बंधन च्छेद असंग॥ समय एक ऊरधगति जेहनी, तेसिद्ध प्रणमो रंग रे ॥ भ० १६ सि० ॥ निरमल सिद्धशिलाने ऊपर जोयण एक लोकंत ॥ सादि अनंत तिहां थिति जेहनि, ते सिद्ध प्रणमो संत रे ॥ २० भ० सि०॥ जाणे पिण न सके कही पुर गुण, प्राकृत तिम
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