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अभय रत्नसार । ५८१ रूपी थायैरे ॥ १२ ॥ वीर जिणेसर उपदिसै, सांभलज्यो चित लाई रे॥ आतमध्यांने आतमा, ऋद्धि मिले सब आई रे॥ वी० १३॥ ॐ ह्रीं श्रीं परमात्मने, अनंतानंत ज्ञान शक्तये ॥ जन्म जग मृत्यु निवारणाय, श्रीमत्सिद्धचक्राय अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहा ॥ इति प्रथम अरिहंतपद पूजा॥
॥ अथ द्वितीय श्रीसिद्धपद-पूजा ।। ॥ दहा ॥ दूजी पूजा सिद्धकी, कीजे दिल खुसियाल ॥ अशुभ करम रै टलै, फलै मनोरथ माल ॥ १॥ काव्य ॥ सिद्धाण माणंद रमाल याणं, नमोर णंत चउक्कयाणं ॥ सम्मग्ग कम्म स्कयकारगाणं, जन्मजरा दुख्क निवारगाणं ॥ १४ ॥ करी आठ कर्म खय पार पांम्या, जरा जन्म मरणादि भय जेण वाम्या ॥ निवारणाय जे आत्मरूपें प्रसिद्धा, थया पार पांमी सदा सि
बुद्धा ॥ १५ ॥ त्रिभागोनदेहावगाहात्मदेसा, रह्याज्ञानमयजातिवर्णादिलेसा ॥ सदानंतसौ
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