________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
५८० पूजा-संग्रह। कीजे तास प्रणाम रे भविका सिद्धचक्र पद वंदो रे ॥ भ०॥ जिम चिरकाले नंदो रे॥ भ०॥ उपशमरसनो कंदो रे ॥ भ०॥ रत्नत्रयीनो दो रे ॥ भ० ॥ सेवै सुननर इदो रे॥ भ० सि० ॥७॥ ए आंकणी ॥ जेहने होय कल्याणक दिवसे, नरके पिण उजवालं ॥ सकल अधिक गुण अतिशयधारी, ते जिन नमि अध टालं रे ॥ भ० सि०॥८॥ जे तिहुं नाण सम्मग्ग ऊपन्ना, भोग करम खिण जांणी॥ लेइदीक्षा शिक्षा दिये जगने, ते नमिय जिन नाणी रे ॥भ० सि०६॥ महागोप महामाहण कहिये, निर्यामिक सत्थवाह ॥ उपमा एहवी जेहने छाजै, ते जिन नमिये उच्छाह रे ॥ भ० सि०॥ १०॥ आठ प्रातीहारज जसु छाजै, पेंत्रीस गुणयुत वाणी॥ जे प्रतिबोध करे जगजनने, ते जिन नमिय उच्छाह रे ॥ भ० सि० ११ ॥
ढाल ॥ अरिहतपद ध्यातो थको, दवह गुण पर्याय रे ॥ भेद छेद करी आतमा, हरिहंत
For Private And Personal Use Only