________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अभय रत्नसार ।
५७६
भव्य भावे त्रिकाले, सदा वासिया आतमा तेण कालें ॥ ३ ॥ जिके तीर्थंकर कर्म उदये करीने, दिये देशना भव्यने हित धरीनें ॥ सदा आठ म हापाडिहारे समेता, सुरेशें नरेशें स्तव्या ब्रह्मपूता ||४|| करा घातिया कम च्यारे अलग्गा, भवोप ग्रही च्यार छे जे विलग्गा ॥ जगत्पंचकल्याणके सुख पांमें, नमो तेह तीर्थंकरा मोक्षकामें ॥ ५ ॥
ढाल || तीरथपति अरिहा नमुं, धरम धुरंधर धीरो जी || देसना अमृत वरसता, निज वीरज वड वीरो जी ॥ ती० ॥ उल्लालो ! वर अखय निर्मल ज्ञान भासन सर्व भाव प्रकासता, निज शुद्ध श्रद्धा आत्म भावे चरण थिरता वासता ॥ जिन नांमकर्म प्रभाव अतिशय प्रातिहारज शोभता, जगजंतु करुणावंत भगवंत भविकजने थोभता ॥ ६ ॥
ढाल || श्रीसीमंधर साहिब आगे ॥ ए-देशी ॥ तीजे भव वर थानक तप करी, जिन बांध्युं जिन नाम ॥ चउसठइद्र पूजित जे जिन,
For Private And Personal Use Only