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अभय-रत्नसार।
तुह हुयवहे पड़णं ॥ १॥ सव्वो जिणप्पभावो, सरिसा सरिसेसु जेण रच्चन्ती। सव्वन्नण अपासे, जड़स्स भमण न सङ्कमणं ॥ २॥ अञ्चन्त दुःकरं पिह, हुयवह निवड़ेन जड़ेन कयं । आणा सव्वन्नणं, न कया सुकयत्थ मूलमिणं ॥३॥ यह कहकर माला पहनावे ॥
अथ छूटी फूल पूजा उवणेव मंगलेवो, जिणाण मुह लालि संवलिया। तित्थपवत्तम समई, तियसे विमुक्का कुसुमबुट्ठी ॥ १॥ यह कहकर प्रभुके सम्मुख फूल उछाले ॥
प्रभातकी आरती॥ जय जय ओरती शान्ति तुमारी, तोरा चरण कमलकी मैं जाउं बलिहारो ॥ टेर ॥ विश्वसेन अचिराजोके नन्दा, शांतिनाथ मुख पू. निम चंदा ॥ जय० ॥१॥ चालिस धनुष सोवनमय काया, मृग लांछन प्रभु चरण सुहाया ॥ जय० ॥ २॥ चक्रवर्ति प्रभु पंचम सोहै, सो
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