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पूजा-संग्रह। ॥८॥ श्रीफल सुपारी नोला फल प्रमुख चढ़ावे॥ इति फल पूजा ॥
अथ अर्ध पूजा ॥ __दोहा ॥ इम अडविधि जिन पूजना, विरचै जे थिर चित्त । मानवभव सफलो करै, वाधे समकित वित्त ॥ १॥ ढाल ॥ अगणित गुणमणि आगर नागर वन्दित पाय, श्रुतधारी उपगारी श्री ज्ञानसागर उवझाय। तासु चरणकज सेवक मधुकर पय लयलीन, श्रीजिन पूजा गाई जिनवाणी रसपीन ॥ २॥ चाल ॥ सम्बत गुणयुत अचल इन्दु, हर्ष भरो गाइयो श्रीजिनेंदु। तासु फल सुकृत थी सकल प्राणी, लहै ज्ञान उद्योत धन शिव निसाणी ॥३॥ श्लोकः ॥ इति जिनवरवन्दं भक्तितः पूजयन्ति, सकल गु. णनिधानं देवचन्द्र स्तुवन्ति । प्रतिदिवसमनन्तं तत्वमुदभासयन्ति, परमसहजरूपं मोक्षसौख्यं श्रयन्ति ॥ १॥ॐ ह्रीं परमपरमात्मने । अर्घ यजामहे स्वाहा ॥ चार कोणें धार दीजे। इति अर्घ पूजा ॥
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