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अभय रत्नसार।
५७३ सरस भोजननव्यनिवेदनात् , परमनिवृतिभागमहं स्पृहे ॥१॥ ॐ ह्रीं परमपरमात्मने । नैवेद्य यजामहे स्वाहा ॥ ७ ॥ इति नैवेद्य पूजा ॥ मिठाई पकवान चढ़ावे ॥
अथ फल पूजा ॥ दोहा ॥ पक्व बीजोरू जिन करै, ठवतां शिवपद देइ। सरस मधर रस फल गिणे, इह जिन भेट करेइ ॥ १॥ ढाल ॥ श्रीफल कदली सुरंग नारंगी आंबा सार, अंजीर वंजीर दाडिम करणा षटुबीज सफार । मधुर सुस्वादिक उत्तम लोक आनन्दित जेह, वर्णं गन्धादिक रमणीक बहुफल ढोवै तेह ॥२॥ चाल ॥ फलभर पूजतां जगत स्वामा, मनु जगति ते लहै सफल पामी। सकल मनुध्येय गतिभेद रंग, ध्यावतां फल समाप्ति प्रसंग॥३॥ श्लोक ॥ कटुककर्मविपाकविनाशनं, सरसपक्वफलबजढौकनं। वहति मोक्षफलस्य प्रभोः पुरः, कुरुत सिद्धिफलाय महाजनाः॥१॥ ॐ ह्रीं परमपरमात्मने । फलं यजामहे स्वाहा
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