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अभय रत्नसार ।
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मुखचन्द, निरखी हरखो भविजन जिम लहोपूर्णानन्द ॥ २ ॥ चाल ॥ जिन गृहे दीप माला प्रकास, तेहथी तिमर अज्ञान नासैं । निजघटै ज्ञानज्योती विकास, तेहथी जगतणा भाव भासें ॥ ३ ॥ श्लोक ॥ भविकनिर्म्मलबोधविकाशकं, जिनगृहे शुभदीपकदीपनं । सुगुणरागविशुद्धसमन्वितं दधतु भावविकाशकृते जनाः ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं परमपरमात्मने । दीपं यजामहे स्वाहा ॥ ५ इति दीप पूजा || मंगलदीप चढ़ावै ।
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अथ अक्षत पूजा ॥
दोहा ॥ अक्षत २ पूरसु, जे जिन आगे सार । स्वतिक रचतां विस्तरै, निजगुण भर बिस्तार ॥ १ ॥ ढाल ॥ उज्जल अमल अखण्डित मण्डित अक्षत चंग, पुञ्जत्रय करो स्वस्तिक - स्तिक भावै रंग । निज सत्तानं सन्मुख उनमुख भावे जेह, ज्ञानादिक गुणठावै भावे स्वस्तिक एह ॥ २ ॥ चाल ॥ स्वस्तिक पूरतां जिनप आगे, स्वस्ति श्रीभद्र कल्याण जागे । जन्म जरा मर
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