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अभय रत्नसार। सुखकार। नर खेत्तमंडन दुह विहण्डन भविक मन आधार ॥ तिहां राव राणां हर्ष उच्छव थयो जग जय कार । दिसि कुमरि अवधि विशेष जाणी लह्यो हर्ष अपार ॥ निय अमर अमरी संग कुमरी गावती गुण छंद । जिन जननि पासें आवि पोहती गहगहती आणंद ॥ हे माय तें जिनराज जायो शचि वधायो रम्म। अम जम्म निम्मल करण कारण करिस सुइय कम्म ।। तिहां भूमि शोधन दीप दर्पण वाय विजण धार। तिहां करिय कदली गेह जिनवर जननी मजन कार ॥ वर राखड़ी जिन पाणि बांधी दिये इम आसीस। जुग कोड़ कोड़ी चिरंजीवो धर्म दायक ईश ॥ _____ ढाल इकविसानी॥ जग नायकजी, त्रिभुवन जन हित कार ए । परमातमजी, चिदानन्द घन सार ए ॥ जिन रयणीजी, दश दिस उज्जलता धरै। शुभ लगनेजो, ज्योतिष चक्रते संचर ॥ जिन जनम्याजी, जिन अवसर माता धरै । तिण अवसरजी, इंद्रासन पिण थरहरै॥
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