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पूजा-संग्रह। त्रोटक ॥ थरहरे आसन इन्द्र चिंतें कवण अवसर ए बण्यो। जिन जन्म उच्छव काल जाणी अतिही आनन्द ऊपन्यो॥ निज सिद्ध सम्पति हेतु जिनवर जाणि भगते ऊमह्यो। विकसंत वदन प्रमोद वधतै देव नायक गहगह्यो॥
ढाल ॥ तब सुरपतिजी, घंटा नाद करावए। सुर लोकजी, घोषणा एह दिरावए ॥ नर क्षेत्रेजी, जिनवर जन्म हुवो अछ। तसु भगतैंजी, सुरपति मंदर गिर गछै॥ __ त्रोटक ॥ गछै मंदर शिखर ऊपर भवन जीवन जिन तणों। जिन जन्म उच्छव करण कारण आवज्यो सवि सर गणों ॥ तुम शुद्ध समकित थास्यें निर्मल देवाधिदेव निहालतां।आपणा पातिक सर्व जास्य नाथ चरण पखालतां ॥ __ ढाल ॥ इम सांभलिजी, सुरवर कोड़ो बहु मिली। जिन वंदनजी, मंदर गिर साहमी चली। सोहम पतिजी, जिन जननो घर आविया । जिन माताजी, वंदी स्वामि वधाविया ।
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