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अभय-रत्नसार ।
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वस्तु॥ पुण्य उदय पुण्य उदय ऊपना जिण नाह । माता तव रयणी समैं देखि सुपन हरषंत जागिय । सुपन कही निज कंतने सुपन अरथ सांभलो सोभागिय। त्रिभुवन तिलक महा गुणी । होस्ये पुत्र निधान ॥ इन्द्रादिक जसु पय नमो। करस्य सिद्ध विधान ॥
॥ ढाल-चंद्रा उल्लालानी ॥ सोहम पति आसन कंपियो। देई अवः मन आणं दियो ॥ मुझ आतम निर्मल करण काज । भव जल तारण प्रगट्यो जिहाज ॥ भव अटवि पारग सत्थवाह । केवल नाणाइय गुण अगाह ॥ शिव साधन गुण अंकुर जेह। कारण उलटयो आषाढ मेहः ॥ हरखै विकसै तब रोमराय । बलयादिकमां निजतनु न माय ॥ सिंहोसनथी ऊठो सुरिंद। प्रणमन्तो जिण आनंद कन्द ॥ सग अड़पय पमुहा आवि तत्थ । करि अञ्जलि प्रणमिय मत्थ सत्थ। मुख भाखें ऐ खिण आज सार । तियलोय पहु दीठो उदार ॥
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