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सज्झाय-संग्रह |
जन छेह ॥ ५७ ॥ उ० ॥ ख गले वे पुड मिले, पडे मुंडे लाल || बेटा बेटी ने वह, न करे सार संभाल ॥ ५८ ॥ उ० ॥ दस दृष्टाते दोहिलो लह्यो नरभव सार ॥ श्रीजिन धरम समाचरो, पांमोजिम भव पार ॥ ५६ ॥ उ० ॥ चरणपणे जे तप तपे, पाले निरमल शील । ते संसार तरी करी, लहे अविचल लील ॥ ६० ॥ उ० ॥ कोडि रतन कवडी सटै, कांइ गमे रे गिवार ॥ धरम पखै पि जीवनें, नहि कोइ आधार ॥ ६१ ॥ उ० ॥ काया माया कारमी, कारमो परिवार ॥ तन धन जोवन कारमो, साचो धरम संभार ॥ ६२ ॥ उ० ॥ चवदै राज प्रमांण ए, छे लोक महंत ॥ जनम मरण कर फरसियो, ते बार अणंत ॥ ६३ ॥उ०|| आप सवारथिया सहु, नही केहनो कोय ॥ विण स्वारथ अण पहुंचते, सुत पि वैरी होय ॥ ६४ ॥ उ० ॥ जरां न आवे जां लगे, जां लग सबल सरीर, धरम करो जीव तां लगे, होय साहसधीर ॥ ६५ ॥ उ० ॥ आरज
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