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अभय-रत्नसार ।
५४७
उ० ॥ पोख्यो पहिले दाहके, इम वधियो अंग ॥ खान पान भूषण भलां, करे नवनवा अंग ॥ ४६ उ०|| हिव बीजें दसके भग्यो, विद्या विविध प्रकार ॥ तीजे दसके तेहने, जाग्यो कांम विकार ॥ ५० ॥ उ० ॥ जिण थांनक तूं ऊपनो, तिणमें मन जाय ॥ चोथे इसके धनतणो, करे कोड उपाय ॥ ५१ ॥ ०॥ पहुंतो दसके पांचमें, मनमें ससनेह || बेटा बेटी पोतरा, परणावे तेह् ॥ ५२ उ० ॥ छ दसके प्राणियो, बले परवस थाय ॥ जरा आइ जोवन गयो, तृष्णा तोही न जाय ॥ ५३ ॥०॥ श्रवै दसकै सातमें, हिव प्राणी तेह || बल भागो बूढो थयो, नारी न धरे सनेह ॥ ५४ ||०|| आठमें दसके डोसलो, खुलिया सहु दांत ॥ कर कंपावै सिरधुरौं, करे फोगट वात ॥ ५५ ॥ उ० ॥ नवमें दसके प्रांणियो, तन सूकत जाय ॥ सांभले वचन बहुत्र तणो दिन झुरता जाय ॥ ५६ ॥ उ० ॥ खाटपड्यो खूंखूं करे, सहू गाली देह || हाल हुकुम हाले नही, दीयो परि
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