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सज्झाय-संग्रह। प्रथम मास जिनवर कहे, मनधरो निसंक ॥२२॥ उ०॥ सथिर मास बीजे हवै. हिव तिज मास॥ करमतण वसि ऊपजे, माता मन आस ॥ २३ ॥ उ०॥ चोथै मासै मातना, प्रणमै सहु अंग ॥ हाथ अने पग पांचमें, तिम सुतको संग ॥ २४॥ उ०॥ पित्त रुधिर छठे पडै, सातमें इण संच ॥ नव धमणी नस सातसै, पेसी सय पंच ॥२५॥ उ०॥ रोम राय पिण सातमें, साढीतीन कोडि ॥ ऊपजे उणे केतले, इम आगम जोडि ॥ २६ ॥ उ०॥ आठमें मासें नीपनो, इम सकल सरीर ॥ उधै सिर वेदन सहे, जपै जिन वीर ॥२७॥उ०॥ शोणित शुक्र सलेषमा, लघु ने वडनीत ॥ वात पित्त कफ गरभथो, थायै नर नीत ॥ २८॥ उ०॥ मात तणी संटि लगै, बालकनो नाल ॥ रस
आहार करे तिहां, आवे ततकाल ॥ उ० ॥ २६ ॥ जननी ल्ये आहार ते, जाय नाडोनाड ॥ रोम इंद्री नख चख वधे, तिम मीजी ने हाथ॥ उ०॥ ३० ॥ सबहू अंगे ऊलस, सरवंग आहार ॥ कव
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