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५४२ सज्झाय-संग्रह। तिहां ऊपजे जोव ॥ ४॥३०॥ जे अपान पवने करो, वासित दुरगंध ॥ तिण थानक तू ऊपनो, हिव हुओ अंधमंध ॥ उ०॥५॥ नाड़ी वांसतणी भरियै, घणी रूघाल ॥ ताती लोह सलाकतें, जाले ततकाल ॥ उ० ॥ ६॥ तिम महिलानी जो निमें, छै नव लख जीव ॥ पुरुष प्रसंगे ते सहू, मरि जाय सदीव ॥ ७॥ ऊपजै नर नारी मिल्यां, पांचेंद्री जेह ॥ तेहतणी संख्या नही, तजो कारज एह ॥ उ०॥८॥ नव लख जीव टिके तिहां, उत्कृष्टी वार ॥ जीव जघन्यपणे टिके, एक दोय त्रिण च्यार ॥ उ०॥६॥ जीव जघन्य तिहां रहे, महुरत परिमाण ॥ बार वरसनी थिति तिहां, उत्कृष्टी जाण ॥ १०॥ उ० ॥ तिहां गरभे कोइ जीवड़ो, जपै जग दीस ॥ फिर नर आवंतो रहै, संवत्सर चोवीस ॥ ११॥ उ०॥ महिला वरस पिचावने, कहिये नीरबीज ॥ पिचहत्तर वरसां पछ, थायै पुरुष अबीज ॥ १२॥ उ० ॥ जीमणी कूखै नर वसै, तिम वांमे नारि ॥ बोच नपंसक
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