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अभय रत्तसार ।
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मनसुं संग्राम मांडियो, जीव पड्यो जंजाल ॥ प्र० ॥ ४ ॥ श्रेणिके प्रश्न पूछियो रे, एहनी सी गति थाय ॥ भगवंत कहे हिवणां मरे तो, सातमी नरके जाय ॥ प्र० ॥ ५ ॥ खिण इक अंते पूछियो रे, सरवारथसिद्धि विमान ॥ वाजी देवनी दुंदुभी, मुनि पांम्या केवलज्ञान ॥ प्र० ॥ ६ ॥ प्रसन्नचंद मुनि मुगते गया रे, श्रीमहावीरना शिष्य || रिद्धहरष कहे धन्य ते, जिण दीठा रे
परतन ॥ प्र० ॥ ७ ॥
॥ जीवोत्पत्तिकी सज्झाय ॥
उतपत जोय जीव आपणी, मनमांहि विमास ॥ गरभा वासे जीवड़ो, वसियो नव मास ॥ उ० ॥ १ ॥ नारीतणे नाभी तले, जिन वचने जोय ॥ फूल तणी जिम नालिका, तिम नाड़ी छै दोय ॥ उ० ॥ २ ॥ तसु तल योनि कहीजिये, वर फूल समान ॥ आंवतणी मांजर जिसो, तिहां मांस प्रधान ॥ उ० ||३|| रुधिर वे तिण मांसथी, ऋतुकाल सदीव ॥ रुधिर शुक्र योगे करी,
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