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सज्झाय-संग्रह |
सगो जी, अरथ पखे सहु कोय ॥ विषय विषम महुरा कह्या जी, किम भोगविये सोय हे मायड़ी ॥ ० ॥ १० ॥ खमि २ माउ पसाय करी जी, में दीधुं तुझ दुक्ख || दियो आदेस जिम हु सुखी जी, वीर चरणें ल्युं दीक्ख हे ॥ मा० ॥ अ० ॥ ११ ॥ तन फाटे लोग झरे जी, दुख न सहगा जाइ ॥ वच्छ सुखी हुवो तिम करो जी, में दोधो आदेश रे जाया ॥ संयम वि० ॥ १२ ॥ मणि मांणक मोती तज्या जी, तोड्यो नवसर हार ॥ मृगनयणी आठ रड़े जी, हिव अह्म कवण आधार नरेसर | संयम० ॥ १३ ॥ कुमर भ सुकुली थिया जी, बहु दुख ए संसार ॥ नेह तुमारो जांगियो जी, जो ल्यो संयम भार रे नारी ॥ संय०॥१४॥ रथ सिविका तब सभी करी जी, कंवर धारणी माइ ॥ श्रेणिकराय उच्छव करें जी, चारित्र ल्यो रिषिराय रे जाया ॥ सं० ॥ १५॥ इम जांगी वैरागियौ जी, वरजै जे नर नारि ॥ कर जोड़ो पूनो भजी, ते तरस्यै संसार हे माय ॥ ० ॥ १६॥
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