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अभय-रत्नसार।
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॥ गजसुकमालको सज्झाय ॥ संवेगरसमे झीलता, मनसुं करे आलोच ॥ देखीने दोहग टलै, तासु साध्यो रे में करि लोच ॥ १॥ यादवराय धन २ गजसुकमाल, तेहने करू रे प्रणाम त्रिकाल ॥ या० ॥ ए आंकणी ॥ प्रभूपास संयम आदस्यौ, तेहनो ए परिणाम ॥ मन वचन काया वसि करी, जो हूं पामं रे केवलज्ञान ॥२॥ या० ॥ मुनि मुगति जायवा अलजयो, पड़खै न दिन दस वीस ॥ साहसीक इम उच्चरतो, पिण दिन जावे रे तो छेह दीस ॥ या० ॥३॥ समसाण जाय काउसग्ग रह्यौ, तिण सांझि प्रभुने पूछ । मुनिवर अवर इम चिंतवै, एह. साची रै छै मह मंछ ॥ या०॥४॥ मुझ सुता विन अवगुण तजी, सौमिल अगनि प्रजाल ॥ सिगड़ी रचि सिर ऊपरै, चिहुं दिसि बांधी रे माटीनी पाल ॥ या० ॥ ५ ॥ वेदनो जिम अधिक वधै. तिम वधै मन परिणाम ॥ चवदमें गुणठाणे चढ्यो, मुनिवर पांमी रे केवलज्ञान ॥
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