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५३६ सज्झाय-संग्रह। जो पड़े नटवो रे नाचतो, तो नटवी मुझ हाथ ॥ क० ॥६॥ दांन न आपै रे भूपती, नट जाणे नृप वात ॥ हूं धन वंछु रे रायनो, राय वंछै मुझ घात ॥ क०॥७॥ तिहांथी मुनिवर पेखियो,धन२ साधु नीराग ॥ धिग २ विषया रे जीवड़ा, मन आण्यो वैराग ॥०॥८॥ संबरभावै रे केवली,ततखिण कर्म खपाय ॥ केवलि महिमा रे सुर करै, समयसुन्दर गुण गाय ॥क०॥६॥
॥ मेघकुमार मुनिकी सज्झाय ॥ वीरजिनंद समोसरया जी, वैदे मेघकुमार ॥ सुण देशन वैरागीयो जो, ए संसार असार रे मायड़ी ॥ अनुमति द्यो मुझ आज ॥ संयम वि. षम अपार रे॥ मा० ॥१०॥१॥वछ तू केणे भोलव्यौ रे, श्रेणिक तात नरेस ॥ कांइ ऊणौ किण दुहव्यो रे, हूं नवि द्यु आदेश रे जाया ॥ संयम विष० ॥ किम निरबाहिस भार रे जाया॥ इन० ॥२॥ आदि निगोदे हूं रुल्यो जी, स
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