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अभय-रत्तसार।
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पापी रे माहरा जीवने, एहमें अकारज धारयो जी ॥७॥०॥ अगन धुखंती रे सिल्ला उपरै,अरणिक अणसण कीधो जो॥ समयसुंदर कहे धन ते मुनिवरू,मन वंछित फल सीधो जी ॥८॥०॥
॥इलापुत्रकी सज्झाय ॥ नांम इलापुत्र जांणिय, धनदत्तसेठनो पूत ॥ नटवी देखी र मोहियो, जे राखे घरसूत ॥१॥ करम न छूटे रे प्राणिया,पूरब नेह विकार ॥ निज कुल छंडी रे नट थयो, नाणी सरम लिगोर ॥ क०॥२॥ इक पुर आओ रे नाचवा, उचो वंस विवेक ॥ तिहां राय जोवा रे आवियो, मिलिया लोक अनेक ॥ क० ॥३॥ दोय पग पहरी रे पावड़ी, वंस चढयो गजगेल ॥ निरधारा ऊपर नाचतो, खेले नवनवा खल ॥क०॥४॥ ढोल बजावे रे नाटकी, गावे किन्नर साद ॥ पायतल घुघर घनघन,गाजे अंबर नाद ॥क० ॥५॥ तिहां राय चिंतेरे राजियौ, लुबधो नटवी रे साथ ॥
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