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५३४ सज्झाय-संग्रह । सीसो जी॥ पाय उवराणा रे वेल परजले, तन सुकमाल मुनीसो जी ॥ अर० ॥ १॥ मुख कमलाणो रे मालती फल ज्यं, ऊभो गोखने हेठो जी ॥ खरै दुपहरै रे दीठो एकलो, मोही माननी मोठो जी ॥ २॥ अ०॥ वयण रंगीले रे नयणे वेधियो, ऋषि थंभ्यो तिण वारो जो ॥ दासीने कहे जाय ऊतावली,ओ रिषि तेडी आंणो जी॥ ३॥ अ० पावन कीजे ऋषि घर आंगणो, वहिरो मोदक सारो जी ॥ नवजोवन रस काया कांड दहो, सफल करो अवतारो जी॥ ४ ॥ अ०॥ चंद्रावदनी रे चारित चूकव्यो, सुख विलसै दिन रातो जी ॥ इक दिन गोखै रमतो सोगठे, तब दीठो निज मातो जी ॥५॥ अ०॥ अरणिक २ करती माय फिरे, गलियै २ मझारो जी॥ कहि किण दीठो रे माहरो अरणलो, पूछ लोक हजारोजी ॥ ६ ॥ अ०॥ उतर तिहाथी रे जननीरे पाय नमे, मनमें लाज्यो तिवारी जी॥ धिग २
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