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अभय-रत्नसार।
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बांध्यो मुसकै॥ धरमी नरने कम धकाया ॥ करमसं जोर न किसका रे ॥प्रा०॥ क० ॥ १३ ॥ सतिय शिरोमणी द्रौपदि कहिये, जिन सम अवर न कोई ॥ पांच पुरुषनी हुइ ते नारी,पूरब कम्म कमाई रे॥प्रा०॥क- ॥ १४॥ आभानगरीनो जे स्वामी, साचो राजा चंद॥ मांइ कीधो पंखी कूकडो, कम्र्मे नाख्यो ते फंद रे ॥ प्रा०॥क ॥ १५ ॥ ईसर देव ने पारवती नारी, करता पुरुष कहावै ॥ अहनिस महिल मसांणमे वासो, भिक्षा भोजन खावे रे ॥प्रा०॥ क० ॥ १६ ॥ सहस किरण सूरज परतापी, रात दिवस रहे अटतो, सोल कला ससीधर जग चावो, दिन २ जाये घटतो रे प्रा०॥क० ॥ १७ ॥ इम अनेक खंड्या नर करमें, भांज्या ते पिण साजा ॥ ऋद्धि हरष कर जोडीने विनवै, नमो २ कर्म महाराजा रे॥प्रा० ॥क०॥१८॥
॥ इति कम्म सज्झाय समाप्तम् ।।
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