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५३० सभाय-संग्रह ।
॥ सात व्यसनोंकी सज्झाय॥ सात विसनना रे संग मतां करो, सुण तेहनो सुविचार विवेकी ॥ सात नरकना रे भाई सातेई, आपै दुक्ख अपार विवेकी ॥ सा० ॥१॥ प्रथम जूवाने रे विसन पडयांथकां, पाडव पांच प्रसिद्ध विवेको ॥ नलराजा पिण इण विसने पड्यो, खोइ सह राजरिद्ध वि० ॥सा०॥२॥ दूसरे मांस भक्षण अवगुण घणा,करै पर जीव संहार विवेकी महासतकनी नारी रेवती,नरक गइ निरधार विवेकी वि० ॥सा०॥३॥तीजे मदिरा पांन विसन तजी, चित धरी वलि चाह वि०॥ द्वीपायण रिषि दहव्यो जादवे, द्वारकानो थयो दाह वि० ॥ सा० ॥ ४॥ चोथे विसने वेस्याघर वसै, लोकमें न रहे लाज वि०॥ कयवन्नादिकनोगयो कायदो, कुविसने रे काज वि०॥सा०॥५ पाप आहेडे कुविसन साचवै, प्राणी हणिये प्रहार वि०॥ मारी मृगली श्रेणिक नृप, गयो पहली
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