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अभय रत्नसार। ५२५ ॥ ३ ॥ बत्तीस नारी हो धन्ना, अतहि पियारी मो० ॥ वाणी तो बोले रे मधुर सुहामणी ॥४॥ बालक तो कामणी रे धन्ना, वय पिण तरुणी मो० ॥ गजगति चाले रे चाल सुहावणो ॥५॥ ए घर मन्दिर हो धन्ना, ए सुख सज्या, मो० ॥ कोड बत्तीसे धननो तूं धणी ॥६॥ ए धन मांणो रे धन्ना, वय पिण जाणो, मो० ॥ भोगवि लेज्यो रे भोग सुहामणो ॥७॥ व्रत अति दोहिलो रे धन्ना, नहिय सुहेलो, मो० ॥ सुगम नही छे रे साध कहावणो ॥ ८॥ घर २ भिक्षा हो धन्ना, गुरु तणी शिक्षा, मो० ॥ कहाणी रे रहणी नही छे सारखी ॥६॥ इक वारे सुणीये हो धन्ना, आगम भणीये मो० ॥ जिनवर जाणो हो दुकर जोगछै॥ १०॥ वनवासै रहणा हो धन्ना, परीसह सहणा, मो०॥ कोमल केसा रे लोच करावणो ॥ ११॥ साचो तें भाख्यो हे अम्मा, झूठ न दाख्यो मोरी अम्मा ॥ दुकर मारग जननी
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